Wednesday, 28 December 2011

लोगों से सच

लोगों   से   सच   सुना   करो |
लोगों  को    सच  कहा   करो ||

पहले  कुछ  हक़   अदा  करो |
फिर  कोई  तुम  गिला  करो ||

दिलवालों   कह   गया   कोई |
थोड़ी - थोड़ी    पिया     करो ||

यूँ   ही   चलती   रहे   क़लम |
शफ़क़त मुझ पर ख़ुदा  करो ||

उतना   उसको   बुरा    लगे |
जितना जिसका भला करो ||

सरख़ुश  सब  ही  रहे  यहाँ |
रब  से  एसी   दुआ    करो ||

थोड़े  ही  दिन  क़याम    है |
मिलते - जुलते रहा करो ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी    

Saturday, 24 December 2011

होठों से जब

होठों  से  जब  भी  फ़रियाद  निकलती है |
बस  चोटें  खाने  के  बाद   निकलती  है ||

एसा  है  क्या  कोई  शख़्स  यहाँ जिसके  ?
जीवन   की   पारी  आबाद  निकलती  है ||

अच्छे -अच्छे  जब  भी  शेर    सुने  कोई |
तब -तब उसके दिल से दाद निकलती है ||

सोचो  उस    बेचारे बाप   का  क्या  होगा ?
जिसकी नालायाक़ औलाद निकलती  है ||

ऊपर  से   देखो   घर   ठीक   लगे  सारे |
खोदो तो  कच्ची  बुनियाद निकलती है ||

वो  शौखी  दिखलाए  और ज़ियादा  तब |
जब दिल से ग़म की रूदाद निकलती है ||

वो  खिड़की  से  मुझे  देखती  रहती  है |
मेरे    जाने  के  ही  बाद  निकलती  है ||

मैंने  यूँ  तो  अब  तक  शेर  कहे   इतने |
अच्छों की पर कम तादाद निकलती है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Friday, 23 December 2011

सब रख दिया है


सब  रख दिया है ताक़ पे हिजाब उठा कर |
लड़ने  चुनाव  वो  चले  निक़ाब  उठा  कर ||

लाये  जो  लोग  दूर  से  अज़ाब  उठा  कर |
जूडे  में  वो  लगा  लिए  गुलाब  उठा  कर ||

घर  में  हमारे  आ  गया  है चाँद सा महबूब |
हमने  भी  रख  दी आज से शराब उठा कर ||

जब  दे  नहीं  सके  हमें  ये  ज़िंदगी में कुछ |
ग़ुस्से  में  फेंक  डाले  सब ख़िताब उठा कर ||

ये फ़ैसला करेगी आज बज़्म -ए -ख़्वातीन |
मांगेगे  सब  से  वोट वो निक़ाब  उठा  कर ||

बेग़म  की  ये  हमेशा  से  रही  हमें   ताक़ीद |
घर   में   न चींज़ें   लायेंगे  ख़राब  उठा  कर || 

क्या - क्या किया है आपने पूछेंगे सभी  लोग |
सब अगला –पिछ्ला लाइए हिसाब उठा कर ||

बेग़म भी ज़िद पे अड़ गईं  लड़ेंगी  इलकशन |
क़ानून  की  जो  देख  ली  किताब  उठा  कर ||

सबसे  छुपा  के  रखे  थे  जो उनके सभी ख़त |
वो  सब  के  सब  ही  ले गए जनाब उठा  कर ||

अब  हो  गया  हूँ  बेसुरा  ढंग  से  न  लगे  सुर |
मुद्दत    हुई    छुआ   नहीं   रबाब   उठा   कर ||

अब क़ाफ़ियों में कीजिये न इस्तअमाल  और |
लो  फेंक  दी    जनाब ने    निक़ाब  उठा   कर ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

Monday, 19 December 2011

हाल बेहाल हैं


हाल   बेहाल   हैं   यूँ  घर-  घर के |
रोज़  जीते  हैं  लोग मर - मर  के ||

ज़ालिमों  अब  तो  बाज़  आजाओ |
थक गए हम अपील कर - कर के ||

जन्म  दिन  आज  एक  नेता  का |
लोग  लाये  हैं थैली  भर - भर  के ||

किस   तरफ़  से  चले  कहाँ  गोली |
घर से चलते हैं हम तो डर - डर के ||


किस  ख़ता   पे    हमारी  रोते   हो |
अश्क आँखों में आप भर - भर के ||

वोट  फिर  आज  मांगने  निकले |
ये  भिखारी  से  लोग  दर- दर के ||

पेड़  उम्मीद  का  जो  था  शादाब |
रह गया ठूँठ पात झर-  झर    के ||

आज   फिर  से  डरा  गया   कोई |
बंद  हैं जो  किवाड़  घर - घर  के ||

सब  के  हिस्से  में  जाम  आयेगा |
साक़ी मुकरे है वादे  कर - कर के ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी