सब रख दिया है ताक़ पे हिजाब उठा कर |
लड़ने चुनाव वो चले निक़ाब उठा कर ||
लाये जो लोग दूर से अज़ाब उठा कर |
जूडे में वो लगा लिए गुलाब उठा कर ||
घर में हमारे आ गया है चाँद सा महबूब |
हमने भी रख दी आज से शराब उठा कर ||
जब दे नहीं सके हमें ये ज़िंदगी में कुछ |
ग़ुस्से में फेंक डाले सब ख़िताब उठा कर ||
ये फ़ैसला करेगी आज बज़्म -ए -ख़्वातीन |
मांगेगे सब से वोट वो निक़ाब उठा कर ||
बेग़म की ये हमेशा से रही हमें ताक़ीद |
घर में न चींज़ें लायेंगे ख़राब उठा कर ||
क्या - क्या किया है आपने पूछेंगे सभी लोग |
सब अगला –पिछ्ला लाइए हिसाब उठा कर ||
बेग़म भी ज़िद पे अड़ गईं लड़ेंगी इलकशन |
क़ानून की जो देख ली किताब उठा कर ||
सबसे छुपा के रखे थे जो उनके सभी ख़त |
वो सब के सब ही ले गए जनाब उठा कर ||
अब हो गया हूँ बेसुरा ढंग से न लगे सुर |
मुद्दत हुई छुआ नहीं रबाब उठा कर ||
अब क़ाफ़ियों में कीजिये न इस्तअमाल और |
लो फेंक दी जनाब ने निक़ाब उठा कर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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