Friday, 23 December 2011

सब रख दिया है


सब  रख दिया है ताक़ पे हिजाब उठा कर |
लड़ने  चुनाव  वो  चले  निक़ाब  उठा  कर ||

लाये  जो  लोग  दूर  से  अज़ाब  उठा  कर |
जूडे  में  वो  लगा  लिए  गुलाब  उठा  कर ||

घर  में  हमारे  आ  गया  है चाँद सा महबूब |
हमने  भी  रख  दी आज से शराब उठा कर ||

जब  दे  नहीं  सके  हमें  ये  ज़िंदगी में कुछ |
ग़ुस्से  में  फेंक  डाले  सब ख़िताब उठा कर ||

ये फ़ैसला करेगी आज बज़्म -ए -ख़्वातीन |
मांगेगे  सब  से  वोट वो निक़ाब  उठा  कर ||

बेग़म  की  ये  हमेशा  से  रही  हमें   ताक़ीद |
घर   में   न चींज़ें   लायेंगे  ख़राब  उठा  कर || 

क्या - क्या किया है आपने पूछेंगे सभी  लोग |
सब अगला –पिछ्ला लाइए हिसाब उठा कर ||

बेग़म भी ज़िद पे अड़ गईं  लड़ेंगी  इलकशन |
क़ानून  की  जो  देख  ली  किताब  उठा  कर ||

सबसे  छुपा  के  रखे  थे  जो उनके सभी ख़त |
वो  सब  के  सब  ही  ले गए जनाब उठा  कर ||

अब  हो  गया  हूँ  बेसुरा  ढंग  से  न  लगे  सुर |
मुद्दत    हुई    छुआ   नहीं   रबाब   उठा   कर ||

अब क़ाफ़ियों में कीजिये न इस्तअमाल  और |
लो  फेंक  दी    जनाब ने    निक़ाब  उठा   कर ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

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