हाल बेहाल हैं यूँ घर- घर के |
रोज़ जीते हैं लोग मर - मर के ||
ज़ालिमों अब तो बाज़ आजाओ |
थक गए हम अपील कर - कर के ||
जन्म दिन आज एक नेता का |
लोग लाये हैं थैली भर - भर के ||
किस तरफ़ से चले कहाँ गोली |
घर से चलते हैं हम तो डर - डर के ||
किस ख़ता पे हमारी रोते हो |
अश्क आँखों में आप भर - भर के ||
वोट फिर आज मांगने निकले |
ये भिखारी से लोग दर- दर के ||
पेड़ उम्मीद का जो था शादाब |
रह गया ठूँठ पात झर- झर के ||
आज फिर से डरा गया कोई |
बंद हैं जो किवाड़ घर - घर के ||
सब के हिस्से में जाम आयेगा |
साक़ी मुकरे है वादे कर - कर के ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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