Monday, 19 December 2011

हाल बेहाल हैं


हाल   बेहाल   हैं   यूँ  घर-  घर के |
रोज़  जीते  हैं  लोग मर - मर  के ||

ज़ालिमों  अब  तो  बाज़  आजाओ |
थक गए हम अपील कर - कर के ||

जन्म  दिन  आज  एक  नेता  का |
लोग  लाये  हैं थैली  भर - भर  के ||

किस   तरफ़  से  चले  कहाँ  गोली |
घर से चलते हैं हम तो डर - डर के ||


किस  ख़ता   पे    हमारी  रोते   हो |
अश्क आँखों में आप भर - भर के ||

वोट  फिर  आज  मांगने  निकले |
ये  भिखारी  से  लोग  दर- दर के ||

पेड़  उम्मीद  का  जो  था  शादाब |
रह गया ठूँठ पात झर-  झर    के ||

आज   फिर  से  डरा  गया   कोई |
बंद  हैं जो  किवाड़  घर - घर  के ||

सब  के  हिस्से  में  जाम  आयेगा |
साक़ी मुकरे है वादे  कर - कर के ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

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