Saturday, 24 December 2011

होठों से जब

होठों  से  जब  भी  फ़रियाद  निकलती है |
बस  चोटें  खाने  के  बाद   निकलती  है ||

एसा  है  क्या  कोई  शख़्स  यहाँ जिसके  ?
जीवन   की   पारी  आबाद  निकलती  है ||

अच्छे -अच्छे  जब  भी  शेर    सुने  कोई |
तब -तब उसके दिल से दाद निकलती है ||

सोचो  उस    बेचारे बाप   का  क्या  होगा ?
जिसकी नालायाक़ औलाद निकलती  है ||

ऊपर  से   देखो   घर   ठीक   लगे  सारे |
खोदो तो  कच्ची  बुनियाद निकलती है ||

वो  शौखी  दिखलाए  और ज़ियादा  तब |
जब दिल से ग़म की रूदाद निकलती है ||

वो  खिड़की  से  मुझे  देखती  रहती  है |
मेरे    जाने  के  ही  बाद  निकलती  है ||

मैंने  यूँ  तो  अब  तक  शेर  कहे   इतने |
अच्छों की पर कम तादाद निकलती है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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