होठों से जब भी फ़रियाद निकलती है |
बस चोटें खाने के बाद निकलती है ||
एसा है क्या कोई शख़्स यहाँ जिसके ?
जीवन की पारी आबाद निकलती है ||
अच्छे -अच्छे जब भी शेर सुने कोई |
तब -तब उसके दिल से दाद निकलती है ||
सोचो उस बेचारे बाप का क्या होगा ?
जिसकी नालायाक़ औलाद निकलती है ||
ऊपर से देखो घर ठीक लगे सारे |
खोदो तो कच्ची बुनियाद निकलती है ||
वो शौखी दिखलाए और ज़ियादा तब |
जब दिल से ग़म की रूदाद निकलती है ||
वो खिड़की से मुझे देखती रहती है |
मेरे जाने के ही बाद निकलती है ||
मैंने यूँ तो अब तक शेर कहे इतने |
अच्छों की पर कम तादाद निकलती है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment