Wednesday, 4 January 2012

मिलने आये


मिलने    आये  फूलों  से  |
दामन  उलझा  शूलों  से ||

बेबस    लंगड़े    लूलों   से |
क्यूँ    बैठे    माज़ूलों    से ?

अब तक क्या सीखा हमने ?
जीवन   की  इन  भूलों  से ||

मीठे    नग़में    ग़ायब   हैं |
सावन   के  उन झूलों   से ||

बेमौसिम बहलाओ   अब |
दिल काग़ज़ के फूलों  से ||

जीना   उसको  आता  है |
जो वाक़िफ़ मअमूलों से ||

सब के सब ज़रदारों  को |
ख़तरा   है  महसूलों   से ||

बच्चे क्या टीचर भी गुम |
 सरकारी   स्कूलों      से ||

झगड़ा  तो  माली  से  था |
हम लड़  आये  फूलों  से ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 


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