कभी इस अंजुमन में मैं कभी उस अंजुमन में मैं |
कहूँ जीवन के एहसासात सब शेरो -सुखन में मैं ||
बंधा अब तक नहीं इश्क़ -ओ -महब्बत की रसन में मैं |
उलझ कर रह न पाया हुस्न के भी बांकपन में मैं ||
दिनों -दिन घुसता जाता हूँ गरानी के दहन में मैं |
बता मेरे ख़ुदा कैसे जिऊँ एसे वतन में मैं ||
बड़ी ही सादगी से अपने दिल की बात को अक्सर |
सजा कर पेश करता हूँ ख़्यालों के वसन में मैं ||
समझ पाया नहीं कोई मेरे जज़्बात की क़ीमत |
हमेशा बेंचू अपने आप को सस्ते समन में मैं ||
मेरी तंगदस्ती से आजिज मेरे बच्चें लड़े बैठे |
अकेला तप रहा तन्हाइयों की अब तपन में मैं ||
अगरचे राहतों का सिलसिला अब तक भी जारी है |
मगर जी तो रहा अब भी ग़रीबी की घुटन में मैं ||
मुझे तो प्यार है दुन्या की सारी ही ज़बानों से |
बराबर का दिखाता हूँ यक़ीं गंगों -जमन में मैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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