Monday, 2 January 2012

कभी इस अंजुमन


कभी  इस  अंजुमन  में  मैं  कभी  उस  अंजुमन   में  मैं |
कहूँ   जीवन  के   एहसासात  सब  शेरो -सुखन   में  मैं ||

बंधा अब तक नहीं इश्क़ -ओ -महब्बत की रसन में मैं |
उलझ  कर  रह   न  पाया  हुस्न के  भी  बांकपन में मैं ||

दिनों -दिन  घुसता  जाता  हूँ   गरानी के   दहन  में मैं |
बता  मेरे    ख़ुदा     कैसे    जिऊँ   एसे  वतन   में  मैं ||

बड़ी ही  सादगी से अपने दिल  की  बात  को अक्सर |
सजा  कर पेश करता  हूँ  ख़्यालों  के   वसन  में   मैं ||

समझ पाया नहीं कोई  मेरे   जज़्बात    की   क़ीमत |
हमेशा बेंचू अपने  आप  को  सस्ते   समन   में   मैं ||

मेरी   तंगदस्ती  से  आजिज  मेरे बच्चें   लड़े  बैठे |
अकेला  तप  रहा  तन्हाइयों  की अब तपन  में मैं ||

अगरचे राहतों का सिलसिला अब तक भी जारी है |
मगर जी तो रहा अब भी ग़रीबी  की  घुटन  में  मैं ||

मुझे  तो प्यार है दुन्या की सारी   ही   ज़बानों   से |
बराबर का दिखाता हूँ यक़ीं गंगों -जमन   में    मैं ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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