Monday, 23 January 2012

कभी सुनना नहीं


कभी  सुनना   नहीं   चाहें   सुना   कर  भागते  हैं  लोग |
कहाँ महफ़िल में अब रस्म-ए -अदब को मानते हैं लोग ||

हमेशा   जोश   में   आकर   तो  सीना  तानते  हैं  लोग |
मगर  हालात  की  उंगली  पे  फिर  भी नाचते हैं लोग ||

मदद के ज़िक्र पर महफ़िल में उठ जाते हैं सबके हाथ |
सवाल उठता है पैसे का तो बस मुंह   ताकते  हैं  लोग ||

बज़ाहिर   तो   मिलेंगे   आप   से  सब  गर्म  जोशी  से |
तो फिर दिल में हसद का जानवर क्यूँ पालते हैं  लोग ||

छुपा   कर   आप  ख़ुद  को  रख  रहे  हो  रोज़  परदे  में |
नहीं    नादान    इतने   सब  हक़ीक़त  जानते  हैं  लोग ||

किया हासिल जो क़द उसने तो कद कितना किया होगा |
अभी  भी  ज़र  से  ही  इंसान  का  क़द  नापते  हैं   लोग ||

सभी   अपने   तरीक़े    से   मुझे   करते   हैं   इस्तमाल |
न   जाने   कैसे   मज्बूरी   को   मेरी   भांपते   हैं   लोग ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

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