खेल में मात हो चुकी कब की |
घर चलो रात हो चुकी कब की ||
आ गया वक़्त अब सिमटने का |
काम की बात हो चुकी कब की ||
मैं पपीहे सा रह गया प्यासा |
जम के बरसात हो चुकी कब की ||
सिर्फ़ अब इन्हिसार में तेरे |
मेरी ये ज़ात हो चुकी कब की ||
तीरगी साथ हो चुकी कब की ||
मुख़्तसर सी थी ज़िंदगी से जो |
वो मुलाक़ात हो चुकी कब की ||
वो नहीं आ रहे अयादत को |
फोन पर बात हो चुकी कब की ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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